धरमजयगढ़।धरमजयगढ क्षेत्र के ग्राम भालुपखना के अन्नदाताओं की पीड़ा अब शांति की चादर फाड़कर बाहर आ चुकी है। वर्षों से अपने खेतों में पसीना बहाकर धरती माँ को सींचने वाले इन किसानों के सब्र का बाँध अब टूटने की कगार पर है। सीमांकन की अनसुनी गुहार, मुआवज़े की अधूरी गाथा और भूमि पर अतिक्रमण की चुप्पी ने अब किसानों को एक चेतावनी स्वर देने पर विवश कर दिया है।
हाल ही में तहसील धरमजयगढ़ के अनुविभागीय अधिकारी (रा.) को सौंपे गए ज्ञापन में किसानों ने स्पष्ट किया है कि यदि आगामी 15 दिवसों में सीमांकन की न्यायपूर्ण जाँच नहीं कराई गई, तो वे धनवादा पॉवर द्वारा चलाए जा रहे समस्त कार्यों को ठप करने को बाध्य होंगे। इस चेतावनी में केवल क्रोध नहीं, वर्षों की उपेक्षा, शोषण और असहायता का संचित दर्द भी झलकता है।
और वहीं किसानों का कहना है कि वे पूर्व में ही सीमांकन के लिए संपूर्ण दस्तावेज—नक्शा, खसरा, चालान की प्रतियाँ—प्रशासन को सौंप चुके हैं। परंतु अभी तक उनके खेतों में न तो कोई अधिकारी पहुँचा, न ही कोई न्याय की आहट सुनाई दी। दूसरी ओर, कंपनी द्वारा निर्माण कार्य निरंतर जारी है—उन ज़मीनों पर भी, जो नहरों, रास्तों और निजी स्वामित्व के अंतर्गत आती हैं।
बता दें,अब आवाज उठी है कि पूर्व में जो मुआवज़ा राशि दी गई थी, वह भूमि अधिग्रहण की वास्तविकता से कहीं कम थी। बिना सहमति, बिना न्याय के कई एकड़ भूमि छीन ली गई—और आज उन पर सीमेंट की मोटी परतें चढ़ाई जा रही हैं, जिनके नीचे दब रही है किसानों की मेहनत, पहचान और अधिकार।
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भालुपखना के इन किसानों ने अब निर्णय ले लिया है—या तो सीमांकन होगा, या फिर निर्माण रुकेगा। इस चेतावनी के स्वर में विद्रोह की चिंगारी है, और न्याय की पुकार भी।
और इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि प्रशासन के लिए यह केवल एक ज्ञापन नहीं, बल्कि वह आखिरी घंटी है, जो भविष्य के आंदोलन की आहट दे रही है। अब देखना यह है कि क्या स्थानीय प्रशासन व सत्ता की कुर्सियाँ इन आहटों को सुनने को तैयार हैं, या फिर खेतों की मिट्टी एक बार फिर संघर्ष का रणभूमि बनकर गूंज उठेगी।