रायगढ़। छत्तीसगढ़ के राजस्व और खनिज विभाग के अफसरों ने बजरमुड़ा घोटाले को ऐसी नजाकत से अंजाम दिया है कि अगर घोटाला कोई कला होती, तो यह राज्य राष्ट्रीय पुरस्कार का दावेदार होता।
बात सिर्फ ज़मीन लूट की नहीं है बात उस “सरकारी शिष्टाचार” की है, जिसमें जनता की जमीन को उनके ही हक की भाषा में लूटा जाता है। सबूतों को मिटाने से लेकर RTI के जवाब में नियमों की गिट्टी-बजरी डालने तक, इस महाघोटाले में नौकरशाही ने वही किया, जो वो सबसे अच्छा करती है जनता को गुमराह करना, और खुद को ईमानदार घोषित करना।
घोटाले का कलेवर : सिंचाई नहीं थी, फिर भी ‘सींचा गया मुआवजा’
बजरमुड़ा में कुल 170 हेक्टेयर ज़मीन का अधिग्रहण हुआ। ज़मीन असिंचित थी, लेकिन मुआवजा सिंचित के हिसाब से दिया गया — सरकार ने तो शायद वर्षा की संभावना को भी मुआवजा में जोड़ दिया होगा।
पेड़ गिने गए, जैसे सरकार जंगल विभाग की नहीं, “कल्पवृक्ष योजना” की बात कर रही हो।और टिन की छतों को पक्के मकान मानकर करोड़ों की बोली लगा दी गई। सुनने में आया है कि एक छप्पर को “ग्राउंड + 2” दिखाकर मुआवजा तय किया गया।
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जांच नहीं, ‘जुगाड़’ हुई और एफआईआर से पहले मिट्टी साफ कर दी गई :जब मामला उजागर हुआ, जांच बैठी। जांच बैठते ही अफसरों की चिंता ये नहीं थी कि गड़बड़ी कहां हुई — बल्कि ये थी कि “अब सबूत कैसे हटाए जाएं?”
CSPGCL ने 111 हेक्टेयर में वर्किंग परमिशन मांगी। तहसीलदार ने झटपट सर्वे कराया, 108 हेक्टेयर पर “गणना पत्रक” बना दिया। और एसडीएम साहब ने अपनी कलम की स्याही से घोटाले को पवित्रता का प्रमाणपत्र दे डाला।
मतलब एफआईआर से पहले सबूतों का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
RTI का जवाब : ‘सूचना तो है, पर घर आकर देखो – पिकनिक साथ लाना मत भूलना’
जब लेखक ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत बजरमुड़ा प्रकरण की पूरी नस्ती मांगी, तो जवाब में अफसरों ने वो दिया जिसकी उम्मीद हर आम आदमी को होती है
“आप कार्यालय में आकर देख सकते हैं। नकल चाहते हैं, तो राजस्व संहिता पढ़ें, पृष्ठ 256 पर लाइन नंबर 13 देखिए।” कहना न होगा, सूचना मांगना आजकल सरकार के लिए “बदतमीज़ी” है और जवाब देना “कृपा”। RTI के जवाब ने स्पष्ट कर दिया कि इस प्रदेश में सूचना नहीं, प्रवचन मिलता है।
नकली आंकड़े, असली चुप्पी – अफसरों के घोटाले में किसानों को बलि का बकरा बनाना तय
अब खबर यह है कि अफसर वकीलों के सहारे ये सिद्ध करने में लगे हैं कि जमीन मालिकों ने ही गलत आँकड़े दिए थे यानी घोटाला भी करो, और किसानों को कटघरे में खड़ा कर दो।
जिस अफसर ने मुआवजा तय किया, वही अब जांच से बच रहा है। जिसे जांच करनी थी, उसने पहले वर्किंग परमिशन दे दी। और जो नागरिक आवाज़ उठा रहा है, उसे RTI के नाम पर “सूचनात्मक ठेंगा” दिया जा रहा है।
‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ का बजरमुड़ा संस्करण – “मुआवजा तुम लो, घोटाला हम लें”
बजरमुड़ा घोटाले की त्रासदी यही नहीं कि इसमें पैसे का हेरफेर हुआ। असल त्रासदी ये है कि पूरे सिस्टम ने मिलकर उस लूट को “विधिसम्मत” बना दिया।
* जमीनें गईं,
* मुआवजा बढ़ाया गया,
* फिर घटाया गया,
* फिर दोबारा बढ़ाया गया,
* फिर सबूत मिटाया गया,
* फिर RTI को रद्दी के हवाले किया गया।
यह पूरा घटनाक्रम हमें एक ही बात सिखाता है – छत्तीसगढ़ में आज भी प्रशासन वही करता है जो अंग्रेज करते थे — “Divide, Distract and Disappear”।