रायगढ़/लैलूंगा
जिले के लैलूंगा तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत कुंजारा (पटवारी हल्का क्रमांक 20) की शासकीय भूमि पर वर्षों से चला आ रहा अवैध कब्जा अब गंभीर प्रशासनिक प्रश्नों के घेरे में है। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि स्वयं तहसीलदार लैलूंगा द्वारा 25 जून 2025 को कब्जे की पुष्टि करते हुए 26 जून को बेदखली का आदेश जारी किया गया था, बावजूद इसके आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, खसरा नंबर 243/1, रकबा 4.327 हेक्टेयर की भूमि ‘बड़े झाड़-जंगल मद’ के रूप में शासकीय अभिलेख में दर्ज है। इस भूमि पर पूर्व कांग्रेस पार्षद प्रत्याशी आशीष कुमार सिदार ने बिना किसी वैधानिक अनुमति के निजी कॉलेज और कोचिंग सेंटर का निर्माण कर व्यावसायिक गतिविधियाँ संचालित कर रखी हैं।
तहसीलदार की जांच रिपोर्ट में इस कब्जे की पुष्टि करते हुए स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि:
आशीष कुमार सिदार द्वारा खसरा नंबर 243/1 पर शासकीय भूमि पर अवैध रूप से निर्माण कार्य किया गया है। उक्त भूमि को पुनः शासकीय अभिलेख अनुसार यथास्थिति में लाने हेतु कब्जा हटाने की कार्रवाई की जाएगी।
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लेकिन इस आदेश को जारी हुए 20 दिन बीत चुके हैं, और प्रशासन की ओर से न कोई बेदखली कार्रवाई की गई और न ही कब्जाधारी पर किसी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई है। यह चुप्पी अब संभावित सांठगांठ और प्रशासनिक उदासीनता की ओर इशारा करती है।
ग्रामीणों का आक्रोश: “आदेश सिर्फ दिखावा था!”
गांव के लोगों ने प्रशासन पर तीखा सवाल उठाया है। उनका कहना है कि अगर सरकारी आदेश सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएं और ज़मीन पर अमल न हो, तो यह शासन व्यवस्था की निष्क्रियता ही नहीं, बल्कि उसकी विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल है। ग्रामीणों का आरोप है कि भू-माफिया को बचाने की मंशा से ही प्रशासन ने जानबूझकर कार्रवाई नहीं की।
जनदबाव में उठी मांगें:
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन और राज्य शासन से यह माँग की है:
1. आशीष कुमार सिदार के विरुद्ध राजस्व संहिता एवं शासकीय संपत्ति संरक्षण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की जाए।
2. मामले में लापरवाही बरतने वाले तहसीलदार व अन्य अधिकारियों पर जांच बैठाकर निलंबन की कार्रवाई की जाए।
3. कब्जे में ली गई शासकीय भूमि को अविलंब मुक्त कर शासकीय नियंत्रण में वापस लिया जाए, और स्थल पर स्थायी सूचना बोर्ड लगाया जाए।
यह केवल भूमि विवाद नहीं, प्रशासन की नीयत की भी परीक्षा है
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शासन इस प्रकरण को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या कार्रवाई होकर न्याय होगा, या फिर यह मामला भी सरकारी फाइलों में दफन हो जाएगा?