धरमजयगढ़ :- धरमजयगढ़ विकासखंड के ग्राम पंचायत पुटूकछार में बीते कुछ दिनों से हो रही निरंतर भारी वर्षा ने न केवल प्राकृतिक आपदा की दस्तक दी है, बल्कि वर्षों से चले आ रहे सरकारी उपेक्षा और विकास की खोखली नींव को भी उजागर कर दिया है।
बता दें,इस ग्राम पुटूकछार के मुख्य बस्ती को खम्हार से जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित पेटोरी चपटा नाला नामक नाले में बनी पुलिया एक बार पुनः ढह गई — और इस बार केवल पुलिया ही नहीं, ग्रामवासियों की आस भी ढहती प्रतीत हो रही है। और वहीं वर्ष दर वर्ष प्रशासनिक अनदेखी और निर्माण में की गई अनियमितताओं की परिणति यह है कि एक साधारण-सी बारिश अब भय का पर्याय बन चुकी है। गांव की एकमात्र कड़ी, जो बाहर की दुनिया से उसे जोड़ती थी, वह मलबे में तब्दील हो चुकी है। अब न वाहन आ सकते हैं, न बीमार को अस्पताल ले जाया जा सकता है। गांव जैसे बंधक बन गया है, प्रकृति के आगे भी और व्यवस्था के आगे भी।
बता दें, जानकारी अनुसार इस पुलिया का निर्माण आरईएस विभाग द्वारा किया गया था, परंतु यह निर्माण कम और दिखावा अधिक था। संबंध में उपसरपंच भुनेश्वर यादव ने बताया कि विगत वर्ष ही पुलिया की जर्जरता को देखते हुए विभाग सहित क्षेत्रीय विधायक लालजीत राठिया,सांसद राधेश्याम राठिया को पत्राचार और मौखिक रूप से अवगत कराया गया था, किंतु उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि सांसद , विधायक महोदय ने आश्वासन तो दिया, किंतु न स्वयं आए, न ही विभागीय अमले को सक्रिय किया। आगे उन्होंने बताया, उनके अथक प्रयास,बारम्बार आरईएस विभाग को निवेदन करने से बीते वर्ष की तरह इस बार भी आरईएस विभाग ने पुलिया के अस्थायी मरम्मत हेतु गिट्टी डालकर खानापूर्ति की, लेकिन तेज बहाव के सामने वह इंतजाम भी टिक न सका और बहकर चला गया। अब हालात ऐसे हैं कि बड़ी गाड़ियों का प्रवेश पूरी तरह बंद हो गया है, और दोनों ओर के मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं। आगे उन्होंने बताया कि बीते वर्ष जब पुलिया पहली बार ढही थी, तब उसे महज़ गिट्टी डालकर ‘सुधार’ दिया गया था। इस वर्ष फिर वही ‘मरम्मत’ दोहराई गई – और नतीजा सामने है, थोड़ी-सी बारिश में पुलिया पुनः बह गई।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह पुलिया पानी से टूटी है या प्रशासनिक असंवेदनशीलता और निर्माण की लापरवाही से ढही है?
स्थिति की गंभीरता यहीं नहीं रुकती — पंचायत के भीतर बथानपारा, फिटिंगपारा, कारालाईन, खर्रा, धौराभाठा जैसे मोहल्लों को जोड़ने वाली वन विभाग की पुलिया भी अब क्षतिग्रस्त हो चुकी है। ग्रामीणों के अनुसार इस पुलिया की नींव पत्थरों से उथली बनायी गई थी, जो वर्षा के बहाव को सह नहीं सकी। नतीजन अब वहां से गुजरना भी दूभर हो गया है। और वहीं गांव की स्थिति इस हद तक चिंताजनक हो चुकी है कि कोई आकस्मिक स्थिति आने पर, एम्बुलेंस सेवा भी गांव तक नहीं पहुंच सकती। मानो शासन ने इस गांव को उसके हाल पर छोड़ दिया हो — “जैसे मिट्टी की बस्ती हो, जिसे पानी बहा ले जाए तो कोई परवाह न हो।”
और संबंध में सूचना उपसरपंच ने आपदा प्रबंधन प्रभारी उज्ज्वल पांडे को भी इस विकट स्थिति की फोन पर दी है। पांडे ने शीघ्र ही स्थल का निरीक्षण कर आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया है। किंतु गांव का धैर्य अब जवाब देने लगा है।
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इन विषम परिस्थितियों में उपसरपंच भुनेश्वर यादव ने बीडीसी जनक राम राठिया को सूचना दी, वहीं बीडीसी ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए स्वयं गांव पहुंचकर स्थिति का अवलोकन किया और प्रभावित ग्रामीणों से संवाद कर आश्वासन दिया कि वे यह मुद्दा शासन-प्रशासन तक दृढ़ता से उठाएंगे। वहीं अब गांववासियों की निगाहें शासन के उस संवेदनशील हृदय को खोज रही हैं, जो उनके संकट को सुन सके, देख सके और कुछ कर सके। जहां पर पुटूकछार की टूटी पुलिया अब एक साधारण संरचना नहीं, यह ग्रामीण जीवन की टूटी उम्मीदों, प्रशासन की टूटी जवाबदेही और खोखले विकास का प्रतीक बन चुकी है। जब पुलिया हर साल टूटती है, और सरकार हर बार सोती है — तब सवाल उठता है कि आख़िर ये पुलिया कब बनेगी, और भरोसा कब टिकेगा? बहरहाल पुटूकछार के गांववासियों की उम्मीद अब प्रशासनिक संवेदनशीलता और ठोस कार्रवाई पर टिकी है, जिससे उनका टूटा हुआ रास्ता नहीं, जीवन की रफ्तार पुनः बहाल हो सके।