रायगढ़। छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले तमनार क्षेत्र के ग्रामीण अब अनदेखी, अन्याय और अपमान के खिलाफ आर-पार की लड़ाई पर उतर आए हैं। जिंदल पावर लिमिटेड (जेपीएल) की मनमानी, शासन-प्रशासन की चुप्पी और स्थानीय संसाधनों की लूट से त्रस्त ग्रामीणों ने सीएचपी चौक लिबरा में आर्थिक नाकेबंदी की है, जो लगातार तीसरे दिन भी जारी रही।
आंदोलन दबाने उतरे तहसीलदार-थानेदार, कोई आश्वासन नहीं, उल्टे आंदोलनकारियों पर FIR दर्ज : बुधवार को तहसीलदार और थानेदार ग्रामीणों को समझाइश देने पहुंचे लेकिन जब कोई लिखित आश्वासन नहीं मिला, तो लोगों ने आंदोलन जारी रखने का निर्णय लिया। इसके जवाब में जेपीएल के भू-अर्जन महाप्रबंधक रीतेश गौतम ने तमनार थाने में आंदोलनकारियों पर प्राथमिकी दर्ज करवा दी।
FIR में स्थानीय निवासी राजेश मरकाम, कन्हाई पटेल, अजम्बर सिदार, शांति यादव और अन्य ग्रामीणों पर गाड़ी रोकने, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया है। बीएनएस की धाराओं 126(2), 296, 3(5) और 351(2) के तहत मामला दर्ज हुआ है, जिससे इलाके में तनाव फैल गया है।
ज़मीन-कोयला-पानी सब ले लिया, बदले में क्या मिला? सड़कों पर धूल, नलों में पीलापन, युवाओं के हाथ खाली
- Advertisement -
तमनार की धरती को कोयला, खनिज और पानी से चूसने वाले उद्योगों ने स्थानीय विकास के नाम पर सिफर दिया है।
* न तो गांवों में पक्की सड़कें हैं,
* न साफ पीने का पानी,
* न ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाएं।
रोजगार में भी स्थानीय युवाओं की घोर उपेक्षा की जाती है। पुनर्वास नीति तो केवल कागज़ों तक सीमित है।
ग्रामीणों की मांगें :* न्याय नहीं मिला तो लड़ाई और तेज होगी
आंदोलनकारियों की प्रमुख मांगें हैं :
* खदान हादसों में मारे गए ग्रामीणों के परिवार को नौकरी और मुफ्त शिक्षा,
* ओवरलोड वाहनों पर कार्रवाई और गति सीमा का पालन,
* ओडिशा सीमा तक सभी गाड़ियों की जांच,
* नागरामुड़ा और मुड़ागांव में पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक।
* तमनार के ग्रामीणों का स्पष्ट संदेश है :”हम लुटेंगे नहीं, अब लड़ेंगे।”
*सवाल उठता है :*
* क्या एक उद्योग विशेष की मुनाफाखोरी के लिए पुलिस, प्रशासन और न्याय प्रणाली की सुई सिर्फ आमजन पर ही टिकेगी?
* क्या आंदोलन करना अपराध है, या स्थानीयों की अंतिम बची आवाज?
* कब तक जनता के संसाधनों पर पूंजीपतियों का कब्जा और शोषण चलता रहेगा?
तमनार की यह जंग केवल वहां के लोगों की नहीं, बल्कि पूरे देश में संसाधनों से समृद्ध लेकिन वंचित समुदायों की आवाज बन रही है। यदि शासन अब भी नहीं चेता, तो यह आंदोलन आने वाले दिनों में और व्यापक रूप ले सकता है।