एमसीबी/23 मई 2025/ मेहनत करने वाले हाथों को एक छोटी सी मदद ही उसके जीवन की दशा और दिशा को बदलने में सक्षम हो जाती है। वनों के किनारे रहने वाले आदिवासी परिवार जिन्हें सरकार ने वनों में रहने के लिए वन अधिकार पत्र दिए हैं, उनके लिए मनरेगा की छोटी-छोटी मदद ने परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है। मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के खड़गवां जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत है बरदर जहां आदिवासी परिवार रहता है। अपने उबड़-खाबड़ जमीन में किसी तरह कड़ी मेहनत से खेतों को तैयार करने वाले श्रमिक धन सिंह और उनकी पत्नी सुघरी अनूसूचित जनजाति वर्ग से आते हैं। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन में मनरेगा से बने एक जल संसाधन ने नई उमंग जगा दी है। पहले केवल महात्मा गांधी नरेगा के अकुशल श्रम में जीवन यापन करने वाले इस परिवार के पास अब अपने ही खेतों में भरपूर काम है और उनकी आर्थिक समस्या भी निराकृत हो चली है। मेहनतकश आदिवासी परिवार की सफलता की कहानी अब औरों के लिए प्रेरणा बन रही है। ग्राम पंचायत बरदर में रहने वाले धन सिंह और उनकी पत्नी सुघरी महात्मा गांधी नरेगा के पंजीकृत परिवार में शामिल अकुशल श्रमिक हैं। इनके वनभूमि पर लंबे समय से रहवास को महत्व देते हुए राज्य शासन से इन्हें कुछ साल पहले वनाधिकार पत्र जारी हुआ। महात्मा गांधी मनरेगा से जुड़े इस परिवार के पास कुछ एकड़ जमीन थी जो वन भूमि होने के कारण असमतल और सिंचाई विहीन थी। लंबे समय से खेत में मेहनत करते हुए इस परिवार ने अपनी भूमि को खेती लायक तो बना लिया था लेकिन केवल बारिश पर आश्रित होने के कारण इन्हें उस भूमि की जोत का कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। ऐसे में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत बने एक कुंए ने उनके खेती को मजबूत कर दिया है। ग्राम पंचायत से प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर धन सिंह की पत्नी श्रीमती सुघरी के नाम पर एक व्यक्तिगत कूप निर्माण कार्य गत वित्तीय वर्ष में स्वीकृत हुआ। इस कार्य के लिए ग्राम पंचायत को निर्माण एजेंसी बनाते हुए दो लाख इक्यावन हजार रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई। तय समय सीमा में तकनीकी सहायक राहुल के देखरेख में यह कार्य पूरा हुआ। कार्य पूरा होने के बाद से ही इस आदिवासी परिवार के जीवन में बदलाव का दौर आरंभ हो गया है। पहले केवल अकुशल मजदूरी पर आश्रित यह परिवार अपने खेतों में तीन फसल ले रहा है। अब इनके खेतों में गर्मी की धान और उड़द जैसे दलहन की फसल लहलहा रही है।
सिंचाई के संसाधन बन जाने से बदल रही है वनवासी श्रमिक परिवार की जिंदगी

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