भारत विविध संस्कृतियों और परंपराओं का देश है, जहाँ हर त्योहार में भक्ति, उल्लास और सामाजिक एकता की भावना झलकती है। ऐसा ही एक महान पर्व है रथ यात्रा , जिसे मुख्य रूप से ओडिशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा के रूप में मनाया जाता है।
रथ यात्रा का महत्व
रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ , उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा है, जिसमें उन्हें भव्य रथों में बिठाकर श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा इस विश्वास के साथ होती है कि भगवान अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं।
यह उत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु पुरी में इकट्ठा होकर भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि रथ को खींचने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
रथों का स्वरूप
तीनों देवताओं के लिए तीन अलग-अलग भव्य रथ बनाए जाते हैं:
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जगन्नाथ जी का रथ – नंदिघोष:
इसका रंग लाल और पीला होता है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
बलभद्र जी का रथ – तालध्वज:
इसका रंग लाल और हरा होता है और इसमें 14 पहिए होते हैं।
सुभद्रा जी का रथ – दर्पदलन:
इसका रंग लाल और काला होता है और इसमें 12 पहिए होते हैं।
हर रथ की ऊंचाई, सजावट और नाम विशेष रूप से पारंपरिक विधि से तय की जाती है। इन रथों का निर्माण हर वर्ष नए सिरे से किया जाता है।
सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सहिष्णुता और श्रद्धा का प्रतीक है। यह वह दुर्लभ अवसर होता है जब भगवान मंदिर से बाहर आकर आम जनता के बीच आते हैं। हर जाति, वर्ग और धर्म के लोग इसमें भाग लेते हैं। इस दिन पुरी का वातावरण भक्ति और उल्लास से भर जाता है।
रथ यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह हमें ईश्वर के प्रति भक्ति, समर्पण और समाज में भाईचारे की भावना का संदेश देती है। पुरी की रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है जिसे एक बार अवश्य अनुभव करना चाहिए।
