रायगढ़ :- 21 जुलाई 2025:
छत्तीसगढ़ की रेंगती प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था की एक और पीड़ादायक तस्वीर सामने आई है। ग्राम साल्हेपाली निवासी संतोषी बैरागी द्वारा 21 मई 2024 को कलेक्टर जनदर्शन में की गई अतिक्रमण की शिकायत को 13 महीने बीत जाने के बाद भी न तो गंभीरता से लिया गया और न ही न्याय मिल सका।
शिकायत में आरोप लगाया गया था कि कन्हैया पटेल द्वारा शासकीय भूमि खसरा क्रमांक 273/2/ख पर बाउंड्रीवाल कर दरवाजा लगा दिया गया, जिससे न केवल आवेदिका के मकान का रास्ता बंद हो गया, बल्कि शासकीय शौचालय, पानी की नाली और टीन छज्जे को भी नुकसान पहुंचाया गया। शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया था कि उक्त भूमि पर शासकीय जल टंकी और ट्रांसफार्मर भी स्थित हैं, बावजूद इसके अतिक्रमणकारियों द्वारा कब्जा कर लिया गया।
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13 महीनों तक प्रशासन की निष्क्रियता के बाद अंततः 21 जुलाई 2025 को पटवारी जांच के लिए गांव तो पहुंचे, लेकिन नक्शा अधूरा होने और जांच की गंभीरता के अभाव में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। उल्टा, पटवारी ने विवाद की बात कहते हुए केवल एक पंचनामा बनाकर औपचारिकता पूरी कर दी और जांच को अन्य पटवारी को सौंपने की अनुशंसा कर दी।
पीड़िता संतोषी बैरागी का आरोप है कि यह कार्यवाही महज दिखावा है। उनके अनुसार, राजस्व अधिकारियों की निष्क्रियता ने दबंगों के हौंसले और बुलंद कर दिए हैं, जो पहले ही उनके परिवार से मारपीट कर चुके हैं और जिसके चलते उन्हें गांव छोड़कर पिछले दो वर्षों से सारंगढ़ में किराए के मकान में रहना पड़ रहा है।
यह मामला न केवल प्रशासनिक सुस्ती को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या गरीब और वंचित वर्ग की फरियादों की कोई कीमत नहीं? जब तक ऐसी शिकायतों पर समयबद्ध और निष्पक्ष कार्रवाई नहीं होती, तब तक न्याय व्यवस्था पर भरोसा कमजोर होता रहेगा।
क्या जवाब देगा सिस्टम…?
क्यों 13 महीनों बाद भी जांच अधूरी है?
कब तक पंचनामे में गरीबों की आवाज़ दबती रहेगी?
क्या न्याय मांगना अब भी एक “साधन-संपन्न” वर्ग का विशेषाधिकार बनकर रह गया है?
संतोषी बैरागी जैसे नागरिकों की लड़ाई भारत की न्याय व्यवस्था की कसौटी है। जब न्याय की उम्मीद पंचनामा और अधूरे नक्शों में गुम होने लगे, तब यह सोचने का समय है कि व्यवस्था को जवाबदेह और संवेदनशील बनाने की जरूरत अब और टाली नहीं जा सकती।